शुरूआती अनुभव कैसे होते हैं?

Prachi Rathore

आश्चर्य की बात नहीं कि आदमी का मन पल -पल जोखिम और रोमांच की ओर यात्रा करता है. जो बात  मायने रखती है, वह यह कि जब रोमांच यथार्थ में सामने होता है, तो उसपर आदमी की कैसी प्रतिक्रिया होती है. SLC में जब मेरे साथ यह हुआ तो मैं सोच- समझ के संसार से दूर थी. मैं जी पा रही थी. जान रहने और न रहने के बीच मैं खुदको जीवित महसूस कर रही थी.

असल सफ़र का पहला पड़ाव मुक्तेश्वर था. जब तक ज़रूरी न हो, तब तक किसी अन्य से बात न करने और खुद में लींन रहने की सरल सी एक हिदायत थी. सामने प्रकृति इतनी विशाल थी कि उस वक़्त ऐसा कुछ करना ज़रूरी भी नहीं लग रहा था. हलकी बौछारों के बीच हम पच्चीस लोग पहाड़ पर चल रहे थे. एक अलग किस्म की शान्ति मेरे भीतर और बाहर टहलती रही. SLC से जुड़ने पर मैं एक नया जीवन जी सकी हूँ.  

 मैं हवा का आना जाना सुन सकती थी. पत्थरों पर चढ़ते हुए किसी ज़रा से आहट से लगता जैसे ख़ुशी आई हो. उस वक़्त मैं जोर से मुस्कुराती और स्फूर्ति से आगे बढ़ती. कभी अगली आहट पर लगता जैसे मौत आ गई. मैं एक पल वहीँ ठिठक जाती. मुझे आश्चर्य होता कि इस दफा मेरा मन विचलित नहीं है. मैं दोबारा मुस्कुराती तो लगता कि मृत्यु मेरी सखी है. उछलते कूदते किसी ख़ुशी के क्षण उसकी गोद में आ गिरुं तो भी कुछ गलत नहीं होगा.

रैपलिंग, माउंटेन क्लाइम्बिंग… ये सब वे चीज़ें थी जिन्हें मैंने मात्र विडिओस में देखा था. यहाँ आने से पहले शंका थी कि यह सब कुछ मेरे नन्हे शरीर के लिए बेहद थकाऊ होगा. मैं सोचती थी जैसे मुझे डर लगेगा. कमाल की बात हुई कि मैं चाह कर भी डर नहीं पा रही थी. यह  अजीब था. मैं जिस डर को खोजते हुए यहाँ तक पहुंची, वह मुझे नहीं मिला.

मेरे आस पास अलग अलग प्रकार की उर्जाएं मौजूद थी. लोग झूम रहे थे, भय से चिल्ला रहे थे, रो रहे थे या खड़े होकर सांत्वना ही दे रहे थे.. मैं यह सब नहीं महसूस कर पा रही थी. ऐसा पहली दफा हो रहा था कि मेरे अन्दर एक डिसकनेक्ट फीचर आ गया था. मैं किसी की तरफ देखकर भी उसे नहीं देख रही थी. मन केन्द्रित था. अपने हाथों और पैरों की मदद से बड़ी बड़ी चट्टानों पर चढ़ने में, या किसी रस्सी पर झूलते हुए किलोमीटरों दूर खुलती खाई को देखकर उतरने में ही. मैं जाने क्या हो चुकी थी. इससे ज्यादा एकाग्रता मैंने खुद में पहले कभी नहीं महसूसी. पार किया जा रहा हर एक पत्थर, हर एक चट्टान खुद्में ही एक उपलब्धि थी जैसे. चलते रहना बहुत ज़रूरी था. यहाँ  सही और गलत राहें नहीं थी. यहाँ सिर्फ चाल थी. हम चलते रहे. आगे एक विशालकाय यात्रा हमारे इंतज़ार में थी.

एक ऐसी यात्रा जो जीवनपर्यन्त मनुष्य को दिशा दर्शाती रहेगी.


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