
मैं कौन हूँ?
यह प्रश्न सुनकर मन हिंदी सिनेमा की बीती गलियों में पहुँच जाता है, जहाँ कोई चोट खाया आदमी अस्पताल के बिस्तर पर एक अरसे की बेहोशी से जागा है. वह याददाश्त खो चुका है, लेकिन उसे बोलना याद है. और इसी एक याद के सहारे वह घबराते हुए आसपास खड़े व्यक्तियों से पूछ लेता है… “ मैं कौन हूँ? “
कभी कभी ऐसा क्यों लगता है कि हम सब न जाने किस प्रकार से बीमार हैं और अपने अपने अनजान अस्पतालों में कैद होकर रह गए हैं? हम याददाश्त खो चुके हैं, लेकिन बोलना हमें याद है. इसी एक याद के सहारे अक्सर जीवन घबराहट और प्रश्नों के बीच झूलता रहता है. बोलना अभिव्यक्ति है. पैदा होते से ही इंसान ने इसका इतना अधिक अध्ययन किया है, कि वह चाहकर इसे भूल नहीं पाता. अभिव्यक्ति जारी रहती है. यह ज़रूरी भी है.
हालाँकि महत्वपूर्ण यह है, कि यह अभिव्यक्ति कोरी न होकर प्रभावशाली रहे. इतनी प्रभावशाली कि जो अन्दर महसूस किया जा रहा हो, वही बाहर प्रकट हो और वही देखने- सुनने वाला समझ पाए. बिना किसी हेर फेर के.
इस बात को समझना बेहद आसान है, लेकिन सीखना कठिन. SLC ने यही सीखने का मौका दिया. अभिव्यक्त करने से पहले अनुभव करना सिखाया. आदमी को अपनी चेतना से रूबरू करवाया. सिर्फ विचार करना नहीं, बेहतर प्रकार से चीज़ों को समझना और उनपर बेहतरी से कैसे विचार किया जाए, इससे अवगत करवाया.
अगर मैं इसपर थोड़ा प्रकाश डालूँ, तो इसे इस तरह देखिएगा:
1 गहरी समझ
बादल बनते हैं और बरस जाते हैं. यह कितना आसान है… जब हमें पता हो कि water-cycle क्या है!
इसी तरह हर चीज़ को असल मायनों में समझ लें तो वह सरल हो जाती हैं. दिमाग पर ज्यादा बोझ न डालें और प्राथमिकताओं पर गौर करें. आदमी क्या जानता है, कितना जानता है और क्या बिलकुल नहीं जानता, इस विषय पर हमेशा उसे हमेशा ईमानदार होना चाहिए. मिसिंग पार्ट्स खोजें और उन्हें भरने कि कोशिश करें. अपनी समझ को बेहतर करने की कोई सीमा नहीं है, और इसका प्रयास कभी भी किया जा सकता है. यह बात इस प्रोग्राम ने भली भाँती समझाई.
2. भूलों से डर कैसा!
फेल टू सक्सीड ! जानते ही होंगे कि गलतियां महान शिक्षक होती हैं. और अक्सर अपार संभावनाओं का द्वार भी. गलतियां कल्पनाशीलता को नए आवाम देती है और फिर सही राह चुनना कहाँ मुश्किल रह जाता है!
3. प्रश्न, प्रश्न और प्रश्न!
ज़्यादा प्रश्न खड़े करेंगे तो क्या पाएंगे ?
यह नहीं कि उत्तर क्या है. किंतु पाएंगे कि किसी परिस्थिति में असल प्रश्न क्या होना चाहिए!
गलत प्रश्नों पर काम करना समय कि बर्बादी है. उत्तर जीवन में हर ओर हैं. सही प्रश्न उन्हें उजागर करते हैं. वरना न जाने क्या कब तक आँखों से ओझल रहे!
4. विचारों का बहाव
ध्यान देना ज़रूरी है कि किसी विचार की उत्पत्ति कहाँ से हुई, और हम उसे किस अंजाम तक पहुँचाने की ख्वाहिश रखते हैं. नए विचार आरंभ के प्रतीक होते हैं. उन्हें अंत नहीं समझा जाना चाहिए. अपने विचारों के बहाव को समझना कितना सुन्दर हो सकता है, यह SLC के माध्यम से महसूस हुआ.
और सबसे अहं चीज़ मुझे लगती है ‘बदलाव’. जब विचारों को समझने कि प्रक्रिया से मन गुज़रता है तो कई बदलाव आते हैं. SLC के माध्यम से उन बदलावों को अपनाने का महत्त्व समझ सकी मैं. मैं कौन थी, मैं कौन हूँ और मैं कैसी होना चाहती हूँ…. यह प्रश्न अब सिर्फ प्रश्न नहीं रह गए हैं. न ही किसी सिनेमा की याद. अब इनके उत्तर हैं. आप जानना चाहेंगे तो मैं कभी अभिव्यक्त करुँगी…